Dashahara kyu manaya jata hai:Dashahara इंडिया के लगभग सारे राज्य में मनाया जाता है। दशाहार को लोग विजय दशमी भी कहते है। जगह -जगह कि बात है कुछ लोग इसे दुर्गा पूजा के नाम से भी जानते है।
बुराई को हरा कर अच्छाई के जीत का भी प्रीतिक है। इस त्यौहार को लोग पूजा कर के अपने घर में मानते है। वैसे तो हर जगह के लोग बड़े शरधा से इस त्यौहार को मानते है। लेकिन ये त्यौहार सबसे ज्यादा बंगाल में हरसो उल्लास से मनाया जाता है।
Dashahara कब है 2021 में।
7 अक्टूबर से कलस स्थापन शुरू हुआ है और 15 शनिवार के दिन इस त्यौहार को मनाया जाएगा। 7 अक्टूबर से लोग 8 दिन के लिए fasting रखते है। लोग दुर्गा जी के दर्शन के लिए मंदिर जायेगा और पूजा करेगे दीप जला कर।
Dashahara क्यों मनाया जाता है।Dashahara kyu manaya jata hai
Dashahar हम क्यों मानते है इस के पीछे कई कहानी है। आप अपने दादी ,दादा ,मम्मी ,पापा से बचपन में जरूर सुना होगा। चलिए आप को बताते है। सबसे से खास कहानी जिस कारण से इस त्यौहार को मनाया जाता है।
आप राम भगवान के बारे में जरूर जानते होगे या फिर आप के दादी ,दादा ने जरूर सुनाया होगा राम भगवान का कहानी। हम लोग को तो मेरे दादा जी ने सुनाया था। आप Comment में बताये आप को किस ने सुनाया था।
राम भगवान अयोधिया नगरी के राज कुमार थे। राम भगवान के पिता राजा दशरथ थे और राजा दशरथ कि पत्नी कैकई थी। राम भगवान के भाई लक्ष्मण थे जो आप को पता होगा।
राम भगवन के साथ कभी नहीं छोरे लक्ष्मण जी ऐसे भाई थे। हर समय उनका साथ दिए। अभी भी अगर किसी भाई में बहुत प्रेम होता है तो लोग उन्हें राम ,लक्ष्मण के जोड़ी कहते है। राम ,लक्ष्मण के जोड़ी अभी भी लोग याद रखे है और दोनों के जोड़ी का मिशाल दिया जाता है।
सीता माँ राम भगवन के जिंदगी में कैसी आई थोड़ा जान लीजिये वैसे तो आप को पता ही होगा। राम भगवन सीता माँ को पहली वार वन में देखते थे फूल तोरते हुए उसी समय राम भगवन को सीता माँ से प्रेम हो गया था।
फिर सीता माँ का स्वयंवर हुआ था जिस में कई राज्य के राज कुमार आये थे। और धनुष को उठाना था कई राजा ने उठाया किसी भी नहीं उठा । और नाम भगवान ने उठाया फिर राम भगवान विवाह सीता माँ से हुआ।
उस स्वयंवर में रावण भी आया था लेकिन उस धनुष को उठा नहीं पाए।
कैकई के कारण ही राम भगवान और सीता माँ को वनवास हुआ था। फिर जब राम भगवान और सीता माँ वन जाने लगे तो लक्ष्मण जी भी साथ चले गए।
रावण लंका का राजा थे और शिव जी भगवान का भक्त थे। रावण काफी ज्ञानी थे और अपने ज्ञान पे काफी घमंड था। जब सीता माँ वनवास में थी उस समय सीता माँ को रावण एक भिकारी रूप में आकर धोका से सीता माँ को लंका ले कर चले गए थे।
फिर सीता जी को वापस लाने के लिए युद्ध हुआ जिस में राम भगवान का साथ बानरी सेना भी दिया था। जब युद्ध में राम भगवान विजय हुए थे और राम भगवान जब वापस आये तब खुशी में लोगो ने Dashahara मनाया शुरू किया और अभी तक मानते है और मानेगे।
Dashahara कैसे मानते है।Dashahara kyu manaya jata hai
एक पूजा से Dashahara मनना शुरू करते है। एक पूजा को लोग अपने घर में कलश बैठाते है और 9 पूजा तक पूजा करते है फिर कलश का पूजा करते थे जितना दिन तक पूजा लगता है।
सुबह और शाम में आरती कर के पूजा किया जाता है। जब पूजा हो जाता है तो लोग कुछ खाते है।
फिर लोग सुबह शाम आरती के साथ ,दुर्गा माँ का पूजा करते है। कुछ लोग 9 दिन का fasting रखते है। कुछ लोग बिना नमक का भोजन करते है फिर last पूजा के दिन नमक वाला भोजन करते है।
इस त्यौहार में लोग नए कपड़े पहनते है। जिस के कारण मार्किट में काफी भीड़ होती है। पूजा के अंतिम दिन लोग नया कपड़ा पहनता है और मेला जाते है। जहाँ कही-कही रावण दहन भी होता है। लोग देखने जाते है।
इस पुजा को मानाने के लिए लोग अपने घर में कलश भी बढ़ाते है। कभी -कभी पूजा 8 दिन होता है और कभी -कभी पूजा 9 दिन होता है।
फर्स्ट पूजा से हि लोग उपवास रखते है। और लोग 8 पूजा लगे तो 8 दिन फल खा कर रहते है और 9 दिन पूजा लगे तो 9 फल खा कर रहते है।
फिर 10 वी दिन उपवास तोड़ कर अपना उपवास तोड़ते है। कुछ लोग को परेशानी भी होतीहै जब वो नमक खाते है। क्यो कि लोग लागर 9 दिन नमक नहीं खाने के वजय से परेशानी होती है।
10 वी दिन लोग काफी धूम -धाम से इस तोहार को मानते है। हर एक राज्य में और हर एक राज्य के गाँव में मेला लगता है।
इस पूजा का और खास बात है जब शर्धलु इस पूजा के लिए अंतिम दिन नम खाते है तो पहले 9 कुमारी कन्या को भोजन करवाते है।
अपने अनुसार सब को तोफा ,दान भी दिया जाता है। खाना खाने के दौरान 9 कन्या का पैर धोया जाता है। फिर उनलोग को बैठने के जगह दिया जाता है। फिर सब को खिलाया जाता है। उस में एक लड़का भी होता है।
इस मेला का लोग हर साल इंतजार करते है। खास कर बच्चे इस मेला का इंतजार करते है क्यों कि इस मेला में बड़े-बड़े झूले आते है जिस पर बच्चा को चढ़ना अच्छा लगा है। वैसे और भी कई प्रकार प्रोग्राम होता है। जिसे लोग मेला जा कर देखना पसंद करते है।
फिर अंतिम दिन दुर्गा जी को फसाया जाता है जो कि पूरा दुःखी का दिन होता है लोग रोतेभी भी और फिर अगले साल माँ दुर्गा का आने का इंतजार भी करते है।
जब दुर्मा माँ का विशर्जन होता है तो बड़े धूम धाम से होता है। इस विशर्जन में काफी लोग शामिल होता है।
उम्मीद करते है आप को सारी जानकारी मिल गया होगा। अगर नहीं मिला तो आप comment box में comment करे।
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